सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

बहुत दिनों की बात है..


बहुत दिनों की बात है
फिज़ा को याद भी नहीं
ये बात आज की नहीं
बहुत दिनों की बात है

शबाब पर बहार थी
फिज़ा भी खुशगवार थी
ना जाने क्यों मचल पड़ा
मैं अपने घर से चल पड़ा
किसी ने मुझको रोककर
बड़ी अदा से टोककर
कहा था लौट आइए
मेरी कसम ना जाइए



पर मुझे ख़बर ना थी
माहौल पर नज़र ना थी
ना जाने क्यूं मचल पड़ा
मैं अपने घर से चल पड़ा
मैं शहर से फिर आ गया
खयाल था के पा गया
उसे जो मुझसे दूर थी
मगर मेरी ज़रूर थी


और इक हसीन शाम को

मैं चल पड़ा सलाम को
गली का रंग देखकर
नई तरंग देखकर
मुझे बड़ी खुशी हुई
मैं कुछ इसी खुशी में था
किसी ने झांककर कहा
पराए घर से जाइए
मेरी कसम ना आइए

वही हसीन शाम है
बहार जिसका नाम है
चला हूं घर को छोड़कर
ना जाने जाऊंगा किधर
कोई नहीं जो टोककर
कोई नहीं जो रोककर
कहे के लौट आइए
मेरी कसम ना जाइए..




-सलीम मछलीशहरी

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