सोमवार, 4 मई 2015

सच और झूठ!

जब भी हमने

उन आँखों में 
थोड़ा सा सच 
पढ़ना चाहा,


शातिर की

भोली सूरत ने
एक दाग़ कहीं का 
धो डाला,


कारिंदे सब सब साजों के

मिल बैठ बजाएं 
तान कोई,


आख़िर क्या कोई छीन सका?

सच्चे मन का अभिमान कोई?


©  पंशु 04052015