सोमवार, 5 दिसंबर 2011

“वो दौर और था, ये दौर और है..”


पंकज शुक्ल

इसी साल आजादी की सालगिरह से ऐन पहले मुलाकात हुई देव आनंद से। मिलने के लिए वक्त मांगने पर फोन का जवाब खुद दिया। फोन वो खुद ही उठाते थे। दूसरी तरफ से आती हैलो की आवाज फोन करने वाले को एक मिनट के लिए ऊपर से नीचे तक रोमांचित कर देने के लिए काफी थी। न कहीं आज के सुपर सितारों सा चारों तरफ पसरा छद्म आवरण और न ही खुद पर किसी तरह का गुमान। अतीत से किसी तरह की मोहब्बत नहीं और सपने उनके जैसे जैसे हकीकत में बदलते जाते, थोड़ा और फैलते जाते, शायद कभी न पूरे होने के लिए।

शिकायत वो लोग करते हैं, जिन्हें दूसरों से उम्मीद होती है। मुझे अब किसी से क्या चाहिए? मैंने जितना चाहा, मुझे उससे सौ गुने से भी ज्यादा मिला। जितनी उम्र लोगों की होती है, उससे ज्यादा वक्त तो मैं फिल्मों में काम कर चुका हूं।


कहते थे, मैं सपनों में जीने का आदी हूं। ये सपने मुझे लगातार काम करते रहने के लिए उकसाते हैं। ये पूरे हो गए तो मैं पूरा हो जाऊंगा। आखिरी सपना देवसाब का था तो बस हरे रामा हरे कृष्णा को फिर से बनाने का। हालांकि बस यही एक बात ऐसी थी जो उनके अपने उसूलों से मेल नहीं खाती थी। कम लोग ही जानते होंगे कि कभी प्रीतिश नंदी और अजय देवगन ने उनकी फिल्म गाइड को फिर से बनाने के लिए देव साब की चौखट न जाने कितनी बार लांघी होगी। सारी बातों मुलाकातों का लब्बोलुआब यही रहा कि गाइड दोबारा नहीं बनेगी। बातों बातों में उस दिन यूं ही मैं भी पूछ बैठा, आप रीमेक के जब इतने खिलाफ हैं, तो हरे रामा हरे कृष्णा फिर क्यूं बनाना चाहते हैं? बोले, पंडित जी आप तो तकदीर को मानते होंगे। मैं आज के युवाओं को बताना चाहता हूं कि उनकी तकदीर उनके हाथों में हैं। नशा, ड्रग्स, जुआं ये सब आज भी वैसा ही है जैसा तब था। सियासत में नए लोगों को आना चाहिए। मेरी बस यही एक कोशिश अपने मुकाम तक नहीं पहुंच सकी।

वो मुलाकात राज कपूर के बारे में उनकी राय जानने को लेकर थी। सब जानते हैं कि देव साब अतीत की यादों में जाने से सख्त नफरत करते रहे। बातचीत की शुरुआत में लगा भी कि शायद देव साब बात करेंगे नहीं। लेकिन, उनकी रंगीन फिल्म हम दोनों की यादों से मैंने बातों का सिरा पकड़ा। वो बताने लगे कि कैसे उन्होंने अपनी तमाम पुरानी हीरोइनों को बुलाया। दिलीप साब को भी बुलाया। शाहरुख खान को भी बुलाया और टीना अंबानी को भी। सब जानते हैं कि इनमें से कोई नहीं आया। हम दोनों के रंगीन संस्करण की रिलीज के प्रीमियर के मौके पर। लेकिन कम लोग ही जानते हैं कि उन्होंने कभी किसी की बात का रंज नहीं माना। बोले, शिकायत वो लोग करते हैं, जिन्हें दूसरों से उम्मीद होती है। मुझे अब किसी से क्या चाहिए? मैंने जितना चाहा, मुझे उससे सौ गुने से भी ज्यादा मिला। जितनी उम्र लोगों की होती है, उससे ज्यादा वक्त तो मैं फिल्मों में काम कर चुका हूं।

लोग अक्सर यही समझते रहे कि देव साब और राज कपूर की पटती नहीं थी। फिल्म इश्क, इश्क, इश्क के प्रीमियर पर राज कपूर द्वारा जीनत अमान को सबके सामने चूमने और देव आनंद की खोज होने के बावजूद जीनत के राज कपूर की तरफ लगातार खिंचते जाने पर भी बातें हुईं। वो बोले, जीनत ने क्या किया, क्यंू किया, क्या सोचकर किया? इन सब बातों में मैं नहीं जाना चाहता। हां, मैं अब भी जीनत को अपनी खोज मानता हूं, पर शायद तब मैंने ही ज्यादती की होगी उस पर अपना अधिकार जताकर। जीनत मुझे अमरजीत (हम दोनों के निर्देशक) की पार्टी में मिली थी। उस शाम ने उसकी तकदीर बदल दी। ऐसा ही कुछ और भी हीरोइनों के साथ हुआ, जिनके लिए मैं मिडास टच बना। टीना मुनीम (अब टीना अंबानी) से मेरी मुलाकात यूं ही एक शूटिंग पर हुई। वो शायद मेरी फिल्म की शूटिंग देखने आई थी। उसने उस दिन मेरा ऑटोग्राफ भी लिया। वहीदा को गुरुदत्त लेकर आए थे हैदराबाद से सीआईडी के लिए, लेकिन गाइड में उन्हें लेने का फैसला मेरा था। हेमा मालिनी को गोल्डी ने जॉनी मेरा नाम में लिया, उन दिनों हेमा हर डायरेक्टर से कहा करती थी, मुझे देव आनंद के साथ काम करना है।

फिर से राज कपूर से अपने रिश्तों के बारे में कुरेदने पर देव साब बोले, राज से मेरा कभी कोई झगड़ा नहीं रहा। दिलीप साब की तो मैं आज भी बहुत इज्जत करता हूं। हम तीनों ने एक साथ बुलंदियों को छुआ, लेकिन आज के दौर की तरह हमने कभी एक दूसरे के खिलाफ कहीं भी कोई उल्टी सीधी बात नहीं की। पंडित जी वो दौर और था, ये दौर और है। मैं तो बस साहिर की लाइनों की तरह अब भी जीता हूं..मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया। हर फिक्र को..? गाने की लाइन यहीं छोड़कर वो मुस्कुराए। बाकी लाइन मुझे गाकर पूरी करनी ही पड़ी। क्या पता था, वो आधी लाइन तामउम्र यादों की तस्वीर बनकर साथ रह जाएगी।

© पंकज शुक्ल। 2011

7 टिप्‍पणियां:

  1. मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया ... देव आनंद जैसे कलाकार रोज रोज नहीं आते ... बहुत अच्छा लगा ये प्रसंग पढ़ना ...

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  2. शुक्रिया दिगंबर नासवा जी।

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  3. सर, ख़ास मुलाक़ात की ख़ास यादें...

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  4. "Gam or khushi ka fark na mehsoos ho jaha,me dil ko us muqaam pe laata chala gaya.. " shayed yahi kehna chahte the dev saab, chhupe alfazon se..

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  5. "Gum or khushi me farq na mehsoos ho jaha, me dil lo us muqaam pe lata chala gaya.."
    shayed yahi kehna chahte the Dev Saheb, apne chhupe alfazon se.

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