शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

अन्ना...


26.08.2011

वो बूढ़ा है, सिसकता देश की ख़ातिर।
जवां युवराज को अपना घर बचाना है।

कहां है दाग़ ढूंढो फिर इक नेक बंदे में,
बने दाग़ी तो अच्छा इसका मर ही जाना है।

ये घेरा तल्ख़ का, शक़ का और शुबहों का,
उन्हें दरबार राजा का कंधों पर सजाना है।

वो राजा हैं वादे करके भूल जाते हैं,
ख़तो क़िताबत का बस करते बहाना हैं।

लिपटकर रोएं गंगा में वजू के सिसकते हाथ,
इन्हीं हाथों से कल बूढ़े की अर्थी उठाना है।

(पं.शु.)

4 टिप्‍पणियां:

  1. दुनिया पर अपनी काली चादर फेंक कर,
    निशा रानी खुश हो रही है कि
    चारों तरफ उसीका साम्राज्य है.

    परन्तु,
    पगली यह नहीं जानती कि
    कल सुबह जब सूरज कि पहली किरण फूटेगी,
    तब वह अपना नंगा बदन छिपाने को,
    कमरो बरामदो गलियारों के कोने ढूंढ़ती फिरेगी.

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