रविवार, 24 अगस्त 2008

तैयारी शूटिंग की


भोले शंकर (8), गतांक से आगे...

गानों की रिकॉर्डिंग खत्म होते ही हम लोग जुट गए फिल्म की शूटिंग की तैयारियों में। इस पूरी फिल्म में अगर किसी एक शख्स ने दिन रात लगातार मेरे कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया तो वो हैं मेरे सहायक मनोज सती। मनोज से मेरा परिचय मेरे एक अभिन्न मित्र श्रीनिवासन रामचंद्रन ने कराया, जिन्हें प्यार से हम लोग रामा कहकर बुलाते हैं। रामा उन दिनों टीवी चैनल ज़ूम का चेहरा मोहरा ठीक करने में लगे हुए थे, और जिस फिल्म पर वो काम कर रहे थे, उसके शुरू होने में अभी देर थी। मनोज सती उन दिनों रामा के ही साथ थे, और रामा के कहने पर वो मेरे साथ आ गए। मनोज सती एक अच्छे टेकनीशियन हैं और उससे भी अच्छे इंसान हैं। यश चोपड़ा के संपादक रहे नरेश मल्होत्रा जब निर्देशक बने तो मनोज सती उनके ही साथ थे। और मनोज की सलाह पर ही फिल्म में आए कैमरामैन राजू केजी। राजू केजी के पिताजी यश चोपड़ा के खास कैमरामैन रहे हैं और राजू ने भी यशराज बैनर में रहते हुए कैमरे की कीमियागिरी करीब से सीखी है। इन दोनों के साथ आ जाने के बाद मेरा बोझ काफी हल्का हुआ। ज़ी न्यूज़ में बतौर प्रोड्यूसर काम कर रहे अजय आज़ाद भी तब तक फिल्म से जुड़ चुके थे। अजय के जिम्मे एक ही काम था और वो ये कि फिल्म के कलाकारों की भोजपुरी पर नज़र रखना। आप शायद ये पढ़कर हैरान होंगे, लेकिन शूटिंग से काफी पहले जब एक दिन मनोज तिवारी हमारे ऑफिस आए, तो अजय वही थे। उनकी पहली प्रतिक्रिया यही थी कि मनोज तिवारी की भोजपुरी शुद्ध भोजपुरी नहीं है और हमें अपनी फिल्म में भोजपुरी भाषा को शुद्ध ही रखना चाहिए। इसी के बाद अजय के जिम्मे सारे कलाकारों की बोली पर नज़र रखने का काम सौंपा गया जो उन्होंने बखूबी अंजाम भी दिया। अजय को फिल्म में मैंने एक छोटा सा रोल भी दिया है, अजय काबिल कलाकार हैं और मौका मिले तो राजपाल यादव जैसे कलाकारों की छुट्टी कर सकते हैं।

फिल्म की तकनीकी टीम की सेलेक्शन की जिम्मेदारी कार्यकारी निर्माता की होती है, और इसके लिए मनोज सती ने सुझाया अपने एक करीबी मित्र मुकेश शर्मा का नाम। मुकेश ने शूटिंग शुरू होने से पहले जो काम किया और शूटिंग के दौरान जो काम किया, उसके बारे में बाद में कभी विस्तार से लिखूंगा। फिलहाल के लिए इतना ही काफी है कि वो अकेले शख्स हैं, जिन्हें फिल्म की शूटिंग खत्म होती ही सबसे पहले मैंने बाहर का रास्ता दिखाया। एक बार तकनीकी टीम सेट हो गई तो काम शुरू हुआ फिल्म की कास्टिंग पर। उन दिनों ऑफिस में कलाकारों का तांता लगा रहता था। लेकिन मेरे दिमाग में फिल्म के किरदारों के लिए कुछ नाम पहले से ही थे। भोले के रोल में मनोज तिवारी और शंकर के रोल में मिथुन चक्रवर्ती का नाम तो पहले दिन से तय था। फिल्म के बाकी अहम किरदार हैं फिल्म की हीरोइन गौरी, भोले से एकतरफा प्यार करने वाली रंभा, भोले का दोस्त- संतराम, भोले और शंकर की मां, भोले के गुरुजी और भोले की बचपन की दोस्त पार्वती।

सबसे पहले हमने तलाश शुरू की गौरी की। गौरी के लिए मुझे एक ऐसी लड़की चाहिए थी, जो दिखने में बिल्कुल मिडिल क्लास की लड़की लगे, लेकिन जिसके चेहरे पर तेज़ होना चाहिए, ऐसा इसलिए क्योंकि फिल्म में उसका दमदार किरदार है। भोले शंकर की कहानी का हर किरदार अपने आप में मुकम्मल किरदार है और उसे कहानी में स्थापित होने के लिए हीरो के सहारे की ज़रूरत नहीं होती। गौरी एक आत्मसम्मानी लड़की है, नौकरीपेशा है और अपने भाई और मां की जिम्मेदारी संभालती है। निरहुआ रिक्शावाला की सीक्वेल बताई जा रही श्रीमान ड्राइवर बाबू में निरहुआ के अपोजिट दो लड़कियां हैं- मोनालिसा और वृषाली वांभरे (जो शायद किसी और नाम से भोजपुरी फिल्में करती हैं)। वृषाली का पर्सेनेसिलिटी गौरी के किरदार के करीब करीब ही थी। वृषाली ने बताया कि वो श्रीमान ड्राइवर बाबू में लीड रोल कर रही हैं, इसके बाद उनका ऑडीशन हुआ और हमने उनका सेलेक्शन भी कर लिया। एग्रीमेंट तक साइन हो गया। लेकिन, फिल्म की रिलीज़ होते ही पता चला कि फिल्म में मेन लीड वृषाली का नहीं मोनालिसा का है। ये पता लगने पर मैंने वृषाली को फोन किया। फोन पर वृषाली ने तमाम दलीलें दी, लेकिन मुझे झूठ बोलने वालों से शुरू से सख्त नफरत रही है। बिना देर किए मैंने वृषाली को बाहर किया और मोनालिसा को दफ्तर मिलने बुलवाया। मोनालिसा के बारे में हिंदी सिनेमा में लोग जो भी कहते हों, लेकिन पहली ही मुलाकात में मुझे लगा कि ये लड़की अदाकारा अच्छी है। और वक्त की पाबंद भी। इसी मीटिंग के बाद फिल्म भोले शंकर की हीरोइन हो गईं मोनालिसा। गुरुजी के किरदार में राजेश विवेक को लिया गया, जिनको मैंने ज़ी न्यूज़ के कार्यक्रम होनी अनहोनी में बतौर टीवी एंकर मौका दिया था। राजेश विवेक ने अपना करियर शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन से शुरू किया था। फिल्म जोशीले में वो मुख्य खलनायक थे। बाद के दिनों में उन्हें आपने लगान और स्वदेश जैसी फिल्मों में भी देखा। संतराम के रोल के लिए गोपाल के सिंह को साइन किया गया। गोपाल को आपने राम गोपाल वर्मा की तमाम फिल्मों में देखा होगा। फिल्म ट्रेफिक सिगनल में उन्होंने उस भिखारी का रोल किया था, जो वैसे तो अच्छे कपड़े पहनकर घूमता है और गर्लफ्रेंड के साथ मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखता है, लेकिन सिगनल पर कपड़े उतारकर भीख मांगता है। मां के रोल के लिए शबनम कपूर का नाम फाइनल हुआ। पारवती के लिए किसी लड़की का सेलेक्शन अब तक नहीं हो पाया था। हमें चाहिए थी एक ऐसी लड़की जो देखने में बिल्कुल गांव की लगे। बहुत माथापच्ची के बाद मेघना पटेल और निराली नामदेव पर आकर बात अटक गई और फिल्म के हीरो मनोज तिवारी का वोट गया निराली के पक्ष में।

सब कुछ तय हो गया तो हम बैठ गए फिल्म का शेड्यूल बनाने के लिए। तय हुआ कि फिल्म का मुहूर्त सेट पर ही 21 नवंबर 2007 को मुंबई के कमालिस्तान स्टूडियो में किया जाएगा। पहला शॉट मनोज तिवारी और मिथुन चक्रवर्ती पर लिया जाना था। दोनों कलाकारों ने करीब महीने भर पहले ही डेट्स भी फाइनल कर दीं। और हमने उसी हिसाब से स्टूडियो, लाइट्स, कैमरा, गाड़ियां और बाकी सारी चीज़ें बुक कर दीं। सबके कॉस्ट्यूम्स भी बनकर तैयार हो गए. सीनवार, शिफ्टवार शेड्यूल भी बन गया। शूटिंग की तारीख जैसे जैसे करीब आ रही थी, मेरी धड़कनें तेज़ हो रही थीं। आखिर टीवी के लिए भले दो हज़ार घंटे से ज़्यादा के प्रोग्राम में बना चुका था, पर फिल्म तो पहली ही थी। और, फिर 15 नवंबर को आया मिथुन चक्रवर्ती का फोन? दादा ने बताया कि वो 19 नवंबर को मुंबई पहुंच रहे हैं, शूटिंग के लिए उन्होंने अपनी तरफ से पूरी तैयारी बताई, लेकिन साथ ही जोड़ दिया पुछल्ला कि शायद कुछ दिक्कत भी हो सकती है। क्या थी वो दिक्कत? और किस विवाद ने नवंबर महीने में लगा दी मुंबई में भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग पर पाबंदी? इस पर बात अगले अंक में। पढ़ते रहिए- कैसे बनी भोले शंकर ?

कहा सुना माफ़,

पंकज शुक्ल
निर्देशक- भोले शंकर

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