शुक्रवार, 8 अगस्त 2008

जिया तोसे लागा रे...


भोले शंकर (3)
गतांक से आगे....

विनय बिहारी जो काम नहीं कर सके, वो काम एक उभरते गीतकार बिपिन बहार ने किया। बिपिन इतने नए गीतकार भी नहीं हैं, लेकिन वो अब तक वही लिखते रहे हैं, जो उनसे मांगा गया। भोले शंकर फिल्म की शुरुआत एक गाने से होती है। गाना ऐसा है जो गांव- देहात, वहां के दस्तूर, रीति रिवाज और वहां की बेफिक्र ज़िंदगी की झांकी पेश करता है। बिपिन को मैंने गाने की ओपनिंग सिचुएशन बताई, "कैमरा उगते सूरत पर चार्ज होता है। अगले सीन में पेड़ों की फुनगियों पर पड़ती सूरज की किरणों को कैच करते हुए कैमरा गुरुजी पर आता है। गुरुजी गाना गा रहे हैं। लेकिन कैमरा उन्हें छोड़ आगे बढ़ जाता है। आगे पानी भरती लड़कियां हैं। खुले में नहाते नौजवान है। पानी में नहाती भैसों के साथ अठखेलियां करते बच्चे हैं। नदी है, पानी है, हरियाली है, गांव की गोरियां हैं..."

बिपिन ने गाना लिखा-

रे बौराई चंचल किरिनियां
तनी हमसे कुछ बात कर ले
उतर आव पेड़वा से नीचे
के बहिया में हम तोका भर लें
बंधा कौन सा ऐसा धागा रे
जिया तोसे लागा रे...

फिर मैंने बिपिन से एक ऐसा अंतरा लिखने की फरमाइश की, जिसे सुनकर गांव छोड़कर शहर में जा बसे हर व्यक्ति के दिल में वापस गांव लौटने की हूक ज़रूर जागे उठे। बिपिन ने लिखा-

बिधाता जे बरदान देवें
त गउवां से दे ना जुदाई
भले तन बसेला बिदेस में
मगर मनवा फिर लौट आई

अगर स्वर्ग बाटे कहीं त
इ पक्का बाटे के यहीं बा
जेवन सुख बा गउवां देहात में
उ दुनिया में कतहू नहीं बा

निछावर जीवन एकरा आगा रे
जिया तोसे लागा रे..

और गाने के हर बोल से पहले बिपिन के लिए संजीवनी का काम करते रहे संगीतकार धनंजय मिश्रा। धनंजय बड़े नाम वाले संगीतकार हैं। राग रागिनी और लोक गीतों के अच्छे जानकार हैं। वो मेरे चेहरे की तरफ देखते जाते थे। और झट से हारमोनियम पर कुछ बजा देते थे। सौ सौ साल जिए बिपिन बहार, जो हारमोनियम की हर तान पर शब्दों की एक नई कतार पिरो देते थे। फिल्म का पहला गाना ही कोई पंद्रह दिन की मेहनत के बाद सामने आया। मुझे लगा कि पूरी फिल्म के गाने बनने में तो ऐसे आधा साल बीत जाएगा। लेकिन, धनंजय मिश्रा का ही कमाल रहा कि बाकी के आठ गाने भी फटाफट होते गए।

मेरे दिमाग में पहले गाने के लिए राहत फतेह अली खान का नाम ना जाने कब से चल रहा था। राहत के बारे में पता करने मैं अपने बेहद करीबी मुकेश भट्ट जी से मिलने गया, तो पता चला कि राहत कहीं विदेश में टूर पर हैं। मुझे लगा कि गाना अभी नहीं हुआ तो शूटिंग का पहला शेड्यूल लेट हो सकता है। मन किया कि एक बार राजा हसन को ट्राइ करना चाहिए। धनंजय ने भी मेरी राय से सहमति जताई। वो लग गए संगीत तैयार करने में और मैं राजा हसन को तलाश करने में। पता चला कि सारेगामापा के सारे फाइनलिस्ट वर्ल्ड टूर पर जा रहे हैं और हमारे पास गाना रिकॉर्ड करने के लिए बचा है बस एक हफ्ता। इन सात दिनों में ही धनंजय ने दिन रात मेहनत करके गाना तैयार किया, जगजीत सिंह जी का संगीत स्टूडियो बुक किया गया। राजा हसन को बुलाया गया और बना वो गाना, जिसे सुनने के बाद बिपिन बहार भी भरे गले से बोल उठे, "इससे सुंदर गीत अब हमसे कौन लिखवा पाएगा। ये मेरे करियर का ऐसा मील का पत्थर है, जिसे पार करने में मुझे पूरा जीवन लगा देना होगा।" राजा हसन ने अपनी गायिकी में पूरा दिल उड़ेल दिया है। जिसने भी अब तक ये गाना सुना है, चाहे उसे भोजपुरी समझ आती हो या ना आती हो, बिना भावुक हुए नहीं रह सका। कभी पंकज उधास का गाया... चिट्ठी आई है..सुनकर मैं मुंबई छोड़ वापस गांव लौट गया था। अगर राजा हसन का गीत सुनकर एक भी भलमानुस गांव की याद में रो भी पाया, तो हम सबकी मेहनत का असली ईनाम वही होगा।

(...जारी)

पंकज शुक्ल
निर्देशक- भोले शंकर

5 टिप्‍पणियां:

  1. भावुक कर देने वाली रचना है। बहुत सुन्दर । बधाई स्वीकारें।

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  2. शोभा जी, मनीष भाई..

    हार्दिक धन्यवाद।

    पंकज शुक्ल
    +919987307136
    pankajshuklaa@gmail.com

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  3. I'm sure this movie will be a runaway hit looking at the hardwork put in by such a wonderful team...
    All da best Sir...
    U ROCK !!
    Stuti :-)

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  4. Thanks Stuts. I am trying to get in touch with for few days. Call me asap.
    Bests,
    Pankaj

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