शनिवार, 13 अक्तूबर 2007

कहानियों की भूलभुलैया

-पंकज शुक्ल

निर्देशक प्रियदर्शन की नई फिल्म भूलभुलैया देखते समय एक ख्याल बार बार मन में आता है और वो ये कि हिंदी फिल्मों के दर्शक अब वाकई नए के लिए तैयार हैं। पेड़ों के इर्द गिर्द नायक को नायिकाओं के साथ कमर मटकाते देखने में अब उन्हें ज़्यादा दिलचस्पी नहीं रही। शाहरुख खान की फिल्म चक दे इंडिया को भले इस नए चलन की शुरुआत का श्रेय दिया जाता हो लेकिन निर्देशक फज़ल ने इसकी शुरुआत मलयालम सिनेमा में कोई 14 साल पहले मनिचित्राताझु बनाकर कर दी थी। ये वही फिल्म जिस पर निर्देशक पी वासु ने पहले कन्नड़ में आप्तामित्रा नाम की फिल्म बनाई और फिर सदी के महानतम नायकों में से एक रजनीकांत को लेकर तेलुगू में सुपरहिट फिल्म चंद्रमुखी बनाई। प्रियदर्शन ने इसी कहानी को हिंदी में चित्रलेखा के नाम से पेश करने का ऐलान किया था और यही फिल्म अब भूलभुलैया के नाम से दर्शकों के सामने है।

भूलभुलैया उन दर्शकों के लिए ज़्यादा बड़ी भूलभुलैया है, जो प्रियदर्शन को बस कॉमेडी फिल्मों की वजह से जानते हैं। जिन लोगों ने प्रियदर्शन की हिंदी में शुरुआती फिल्में मसलन मुस्कुराहट, गर्दिश, विरासत, काला पानी और डोली सजाके रखना देखी हैं, उन्हें पता है कि प्रियदर्शन को जज्बात की रेत पर रिश्तों की रस्साकशी कराने में महारत हासिल है। कॉमेडी के करतब तो प्रियन ने काला पानी और डोली सजा के रखना की नाकामी के बाद दिखाने शुरू किए।
भूलभुलैया का कहानी एक ऐसे जोड़े की कहानी है, जो आधुनिक सोच विचारों का है और जिसे इन बातों के बावजूद अपने
पुश्तैनी महल में रहने से परहेज नहीं, कि ये महल अतृप्त आत्माओं का डेरा है। जो दर्शन भूल भुलैया को एक कॉमेडी फिल्म समझकर देखने पहुंचे, उनके लिए फिल्म की कहानी एक झटका है। लेकिन हंसाने के मसाले प्रियन ने एक ऐसी फिल्म में ढूंढ लिए हैं, जो एक प्रेम कहानी की तरह शुरू होकर, हॉरर, सस्पेंस और थ्रिलर तक का सफर बखूबी सफर करती है। इस जोड़े यानी सिद्धार्थ (शाइनी आहूजा) और अवनी (विद्या बालन) के सामने जब अजीबोगरीब घटनाएं होने लगती हैं, तो सिद्धार्थ अपने नजदीकी दोस्त आदित्य (अक्षय कुमार) को अमेरिका से महल में बुलवा लेता है। आदित्य पेशे से मनोचिकित्सक है और उसका काम ये पता लगाना है कि आखिर इस महल में भूतों के किस्से शुरू कैसे हुए? आदित्य को अपने मिशन में गुरुजी (विक्रम गोखले), राधा (अमिषा पटेल) आदि का अच्छा साथ मिलता है।

प्रियदर्शन की ये फिल्म इंटरवल के बाद भले थोड़ा लंबी लगती हो, लेकिन दर्शकों का मनोरंजन करने में ये कामयाब रहती है। पहले दिन सिनेमाहॉल पर लगी हाउसफुल की तख्ती इस बात की ताकीद करती है कि प्रयोगात्मक सिनेमा के लिए हिंदी सिनेमा के दर्शक अब तैयार हो चुके हैं। प्रियन की इस फिल्म में अगर किसी ने वाकई काबिले तारीफ काम किया है तो वो है विद्या बालन। पहले नई नवेली दुल्हन और फिर महल की दंतकथाओं के किरदार मंजुलिका के चोले में घुसकर विद्या बालन ने जो काम किया है वैसा हाल के दिनों में हिंदी फिल्मों की किसी अभिनेत्री ने शायद ही किया हो। अक्षय कुमार तो खैर इस तरह के किरदारों में महारत ही रखते हैं, सहारा असरानी, राजपाल यादव, मनोज जोशी और रसिका ने भी अच्छा दिया है। तकनीकी रूप से फिल्म दस में दस अंक पाती है। संगीत पहले से ही एफएम चैनलों पर धूम मचा रहा है। सप्ताहांत के लिए मनोरंजन के लिहाल से फिल्म बुरी नहीं है।

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