शुक्रवार, 31 अगस्त 2007

दीपिकाएं बुझती नहीं हैं.....

शायद ज़ी न्यूज़ की तत्कालीन संपादक अलका सक्सेना जी ने वो कॉल मुझे मॉरीशस से की थी, बस दो लाइनें और एक सवाल। “हम लोग यहां मार्केटिंग और सेल्स की टीम के साथ हैं। तुमने आज तक के मूवी मसाला से टक्कर के लिए जो बोले तो बॉलीवुड का कॉन्सेप्ट तैयार किया, वो अच्छा है। कितने दिन की नोटिस पर काम शुरू हो सकता है?” अलका जी जानती थी कि मेरा जवाब क्या होगा, लेकिन इसी भरोसे के साथ उनका बड़प्पन भी छुपा था और वो कि हर फैसला अपने सहयोगियों को भरोसे में लेने के बाद लेना। मैंने कहा कि वर्किंग हैंड्स मिलने के दो दिन बाद।

वो लौटीं और अगले दिन मेरी डेस्क पर एक बेहद खूबसूरत लेकिन घरेलू सी लगने वाली लड़की पहुंची। नाम-दीपिका तिवारी। परिचय- ज़ी सिने स्टार्स की खोज की फाइनलिस्ट। ख्वाहिश- मुट्ठी बढ़ाकर जल्द से जल्द आसमान समेट लेना। बोले तो बॉलीवुड की वो सबसे कामयाब एंकर बनी। उसके फैन्स भी खूब थे। खाड़ी देशों से अक्सर उसकी तारीफ के ख़त आते। मेहनत भी उसने खूब की और काम सीखने की लगन ने उसे जल्द ही एक अच्छा रिपोर्टर और कॉपी राइटर बना दिया।

दो साल पहले का अपना जन्मदिन मुझे अब भी याद है जब उसने मुझसे बोले तो बॉलीवुड की पूरी टीम को फिल्म दिखाने को कहा। मैंने दिखाई भी और अगले दिन वो पूरी टीम से चंदा करके मेरे लिए एक सुंदर सा पुलोवर बतौर बर्थडे गिफ्ट खरीद लाई। फिर पता नहीं उसे क्या हुआ, काम में उसका मन नहीं लगता। मैंने एक दिन डांटा तो एचआर तक शिकायत कर आई। फिर लौटकर माफी भी मांगी। शायद जो ख्वाब उसने देखे थे, उनमें रंग नहीं उतर पा रहे थे। एक दिन आकर बताया कि उसे किसी से प्यार हो गया है। और वो दोनों शादी करने वाले हैं। लड़के का नाम भी बताया। और फिर दो दिन बाद ही रात करीब 11 बजे रोते हुए फोन किया कि सर मुझे ले जाइए। उसका अपने ब्वॉय फ्रेंड से झगड़ा हो गया था और वो बारिश में नोएडा की किसी सड़क पर अकेली खड़ी थी। मैंने समझाया कि प्यार में फैसले प्यार से ही लिए जाते हैं, गुस्से में नहीं। किसी तरह दोनों में समझौता हुआ।

...लेकिन इस बार दीपिका का फोन नहीं आया। बस ख़बर आई कि वो दुनियादारी से हार चुकी है।

दीपिका, दूसरी लड़कियों के लिए एक मिसाल बनकर उभरी थी। लेकिन इससे पहले कि उसकी रौशनी फैल पाती, उसे ग्रहण लग गया। ग्रहण जल्द से जल्द ऐश की ज़िंदगी जीने का। इसीलिए उसने फिर से मुंबई की राह पकड़ी, फिर वापस दिल्ली लौटी। लेकिन इस बार उसके जीने का फलसफा बदला हुआ था। ज़िंदगी उसके लिए एक स्टेशन नहीं ट्रेन बन चुकी थी। वो हर फासला जल्द से जल्द पूरा कर लेना चाहती थी, बिना ये देखे कि आगे पटरियां हैं भी या नहीं। गाड़ी ने हिचकोले खाए, लेकिन वो नहीं संभली। वो अब ग्लैमर की दुनिया से दूर रहकर अपनी खुद की दुनिया बसाने को बेताब थी। वो हार्डकोर न्यूज़ एंकर बनना चाहती थी, लेकिन ग्लैमर का ठप्पा उससे उतरा नहीं। वो बरखा दत्त बनना चाहती थी, लेकिन दुनिया ने उसे दीपिका तिवारी से ऊपर उठने नहीं दिया।

दीपिका हारी नहीं, उसे हरा दिया गया। दीपिकाएं बुझती नहीं हैं, या तो तेज़ हवा का कोई झोंका उन्हें विदा कर देता है, या फिर तेल साथ छोड़ देता है। और पीछे अंधेरे में रह जाता है तो बस एक सवाल? काश, दीपिका ने फिर फोन किया होता? काश, कोई तो होता ऐसा जिससे वो अपना हर दुख कह पाती? तब शायद दीपिका की रौशनी आज भी कोई कोना रौशन किए होती।

दीपिका तुम जहां भी रहो, जगमगाती रहो...

4 टिप्‍पणियां:

  1. well said pankag sir "दीपिकाएं बुझती नहीं हैं..... "

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  2. जाने कब से कहने को बेताब था...दीपिका के जाने की ख़बर ने एक ऐसा झटका दिया कि जैसे पूरे शरीर को लकवा मार गया। मेरी उससे कभी नहीं बनी, लेकिन उसे मुझसे गिला शिकवा नहीं था। और ना ही मुझे उससे। हां, ये सच है कि उसकी उड़ान मुझे कभी पसंद नहीं आई क्योंकि मैं ज़मीन पर कदम जमा के रखने में यकीन रखता था और वो हाथ फैला के हवा में उड़ने में। हांलाकि मेरे और उसकी सोच में बिल्कुल अंतर नहीं था, हम दोनो ही अपनी-अपनी मंज़िल अपने-अपने तरीके से पाने में यकीन रखते थे। हम एक दूसरे की इज़्जत भी करते थे। एक दिन मैं न्यूज़ रूम के बाहर खड़ा होकर सिगरेट पी रहा था, काम के चलते सिर फटा जा रहा था। तभी दीपिका आई....बोली " अपनी हालत देखिए, ऐसे ही काम करने के चलते आप उम्र से पहले बुढ़े हो गए हैं। शादी किससे करेंगे आप?" मैने झल्लाकर जवाब दिया कि मेरा सिर दर्द हो रहा है....मुझे परेशान ना करो। दीपिका चली गई, लेकिन बस थोड़ी ही देर में वापस लौटी और उसके हाथ में एक ग्लास था, जिसमें सिर दर्द की दवा घुली हुई थी। उसने मुझे वो ग्लास दिया और चुप रहकर दवा पी जाने की हिदायत भी। दीपिका ऐसी ही थी...।
    उसके जाने की ख़बर जब मेरे पास आई तो मैं उसी - बोले तो बॉलीवुड के एंकर लिंक्स लिख रहा था, जो कभी वो पढ़ा करती थी।
    वो एक ऐसी दोस्त थी, जिसे मैने कभी दोस्त नहीं कहा.....इसकी कमी आज भी महसूस होती है।
    अश्वनी कुमार

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  3. us sanay jab 'deep' apni jiwan ki ek disha dena chahti thi...jo har ladki ke maan main hoti ha tab hum room mates the...main mere jindgi ki ab tak ki sabse badi ladaye bhagwan se lad rahi thi...aur 25 jan apni 'rakhi' ki maut ke aga phir shayaad ismebhagwan ki koi margi hogi woh jang haar gai...nov se 15 jan jab tak deep mere saat rahi hum kabhi kabhi kitchen main kuch dard share karte rahe..lakin us waqt dono ke hi pass ek dusre ki liye samaye nahi tha...lakin jis main woh jindgi dhoond rahi thi woh hi uski jiwan ka sabse bada dukh baan jayega aisa main nahi socha tha...us ki is tarah duniya se jana mere taza jakham ko aur kureed gaya...may ur soul get peace deep....

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  4. us sanay jab 'deep' apni jiwan ki ek disha dena chahti thi...jo har ladki ke maan main hoti ha tab hum room mates the...main mere jindgi ki ab tak ki sabse badi ladaye bhagwan se lad rahi thi...aur 25 jan apni 'rakhi' ki maut ke aga phir shayaad ismebhagwan ki koi margi hogi woh jang haar gai...nov se 15 jan jab tak deep mere saat rahi hum kabhi kabhi kitchen main kuch dard share karte rahe..lakin us waqt dono ke hi pass ek dusre ki liye samaye nahi tha...lakin jis main woh jindgi dhoond rahi thi woh hi uski jiwan ka sabse bada dukh baan jayega aisa main nahi socha tha...us ki is tarah duniya se jana mere taza jakham ko aur kureed gaya...may ur soul get peace deep....

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