आज की शाम मंज़र भोपाली साहब के नाम!
मंज़र भोपाली
16.08.2007 - दुबई
वक्त के तकाजों पर ग़र हम जिए होते
क्यूं हमारे होठों पर मर्सिए होते
आपकी जगह होते हम जो बागबां अब तक
हमने सारे फूलों में रंग भर दिए होते
इज़्ज़तों से से बढ़कर हमको जान प्यारी है
वर्ना हमने जिल्लत के घूंट क्यूं पिए होते
सितमगरों का ये फरमान, ये घर भी जाएगा
ग़र मैं झूठ ना बोला, तो ये सिर भी जाएगा
बनाइए ना किसी के लिए भी ताजमहल
हुनर दिखाया तो दस्ते हुनर भी जाएगा
ये शहर वो है वफ़ाओं को मानता ही नहीं
यहां तो रायगा ख़ून ए ज़िगर भी जाएगा
ये मांएं चलती हैं बच्चों के पाओं से जैसे
उधऱ ही जाएंगी, बच्चा जिधर भी जाएगा
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उस घर के किसी काम में बरक़त नहीं होती
जिस घर में भी मां बाप की इज्ज़त नहीं होती
हम मारे गए तेरी मोहब्बत के भरोसे
दुश्मन कोई होता तो ये हालत नहीं होती
इस क़ातिले आलम से ना रख अमन की उम्मीद
जल्लाद की आंखों में मुरव्वत नहीं होती
लगता है मुझे यूं तुझे छूना भी गुनाह है
जबतक तेरी आंखों की इजाज़त नहीं होती
कोई भी रुत हो सफ़र को निकलना पड़ता है
शिकम के वास्ते कांटों पर चलना पड़ता है
ज़रा सा वक़्त गुजर जाए गफ़लतों में अगर
तो अच्छे अच्छों को फिर हाथ मलना पड़ता है
ये ज़िंदगी की हक़ीक़त नसीब है सबका
कि शाम होते ही सूरज को ढलना पड़ता है
जारी...
पहली बार आपके धाम आना हुआ। सार्थक रहा। शायरी का एक ठिकाना मिला।
जवाब देंहटाएंबधाई। होंगी मुलाकातें।
पंकज जी नमस्कार मैं भी पंकज ही हूं आपका ब्लाग पढ़ा अच्छा लगा आप ग़ज़ल के शौकीन हें ये जानकर भी अच्छा लगा । ग़ज़ल आपने जो दी हैं उनमें से कुछ में कुछ शब्द ग़ायब हैं उनका ध्यान रखा कीजिये ये ग़लतियां नहीं तो शाइर के खाते में लिखा जाती हैं । आप फिल्म भी बनाते हैं ये आपके ब्लाग पर देखा अच्छा है । मैं एक कहानीकार हूं मेरी कुछ कहानियां आप मेरे ब्लाग पर http://subeerin.blogspot.com देख सकते हैं ।
जवाब देंहटाएंभोपाली साहब की इस गजल को प्रस्तुत करने कलिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंउनका यह शेर तो वाकई लाजवाब है-
सितमगरों का ये फरमान, ये घर भी जाएगा
ग़र मैं झूठ ना बोला, तो ये सिर भी जाएगा